27 जून 2025 - 16:25
माहे मोहर्रम और सीरते अहले बैत अ.स.

जब आशूर का दिन होता तो वह दिन मेरे बाबा के लिए गिरया ओ ज़ारी और सोगवारी का दिन होता था 

:امام رضا علیه السلام

كانَ أبي إذا دَخَلَ شَهرُ المُحَرَّمِ لايُرى ضاحِكا . . . فَإذا كانَ يَومُ العاشِرِ كانَ ذلِكَ اليَومُ يَومَ مُصيبَتِهِ و حُزنِهِ و بُكائِهِ؛

 [وسائل الشيعه: ج 10، ص 505]

इमाम रज़ा अ.स. :

जब माहे मोहर्रम आता तो कोई मेरे वालिद को मुस्कुराता हुआ नहीं देखता था, और जब आशूर का दिन होता तो वह दिन मेरे बाबा के लिए गिरया ओ ज़ारी और सोगवारी का दिन होता था। 

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