:امام رضا علیه السلام
كانَ أبي إذا دَخَلَ شَهرُ المُحَرَّمِ لايُرى ضاحِكا . . . فَإذا كانَ يَومُ العاشِرِ كانَ ذلِكَ اليَومُ يَومَ مُصيبَتِهِ و حُزنِهِ و بُكائِهِ؛
[وسائل الشيعه: ج 10، ص 505]
इमाम रज़ा अ.स. :
जब माहे मोहर्रम आता तो कोई मेरे वालिद को मुस्कुराता हुआ नहीं देखता था, और जब आशूर का दिन होता तो वह दिन मेरे बाबा के लिए गिरया ओ ज़ारी और सोगवारी का दिन होता था।
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